दिसासूर
भगवान दया ते कउनिउ बिधि, जब कइ पावा हम मिडिल पास,
तब बड़ी लगन ते दउरि घूपि, कइ चलेन नौकरी के तलास ।
हम जिला बोर्ड के दफतर मा कइयौ दरखासै दइ आयन,
सिउनन्दन हेडकिलरकौ ते, पुनि हाथ जोरि कै कहि आयन।
औ चेयरमैन के बंगला मां, हम कीन बहुत कुछ नकघिर्री ,
सब आपनि दसा गरीबी कै,कहि डारा उनते होइ सिर्री ।
बहु फैसनु कीन बनेन बाबू, पुरिखन का बाना बिसरावा,
चपराइसिउ तक का घूसि दीन, ओहदा न मास्टरी का पावा।
हम राखा ना याकौ उठाय, जो जतन रहै अपने बस के,
पर मिली न मुंसीगीरिउ तक, थाना के कांजी हाउस केै।
दरखास दीन टिक्कस लगाय, तब पहुंचि कचेहरी साहेब की,
फिरि कीन चेरउरी बार-बार , तहसीलदार अैार नायब की ।
पर मिली न कहुं पटवारगीरी, औ होइ न सकेन हम चपरासी,
तकदीर छपरिया फारि देति, मांगे न मिलति रोटी बासी।
जब धुन्नी काला कम्पू ते, लिखि भेजेनि कल ही चले आव,
भरती है पुतरीघर मा सो, जल्दी ते नाव लिखाय आव।
पाती पढ़ि केै छाती गरगजु भै, पण्डित ते साइत बिचरावा,
धुन्नू काका का खतु पढ़िकै,हम सारा बेउरा समुझावा ।
कम्पू का सुनतै नाव उपरहित, कहेनि न होइहै कामु पूर,
तुम काल्हि न वइसी का जायो, बच्चल भद्दर है दिसासूर।
हम कहा कि कउनिव बात नहिन, यह बात आपकै मानित है,
पर दिसासूर टारै के , हम अच्छे टटका जानित है।
रबि दोस चलै बीरा चाबै, औ सोमै देखि चलै दरपन,
मंगर के दिन का दिसासूर, कटि जाय चलै गुरू करि अरपन।
बुध धनिया, जीरा बेफै का, सुधि कइकै पंथी चाबि लेय,
दिन सूकबार का हंसी-खुसी ते, दहिउ चलत खन चाखि लेय।
घिउ खाय सनीचन के दिन तो,फिरि साइति परबल बड़ होय,
करि सकै न र्वावा एै ट्याढ़, सब बिघिन राह के जायं खोय।
पण्डित जी सुनिगे गुटुर-गुटुर, मुलु बकुरे ना कुछु हां नाहीं,
सुनि घर मा अजिया दिसासूरू, निज हाथु डोलाय कहेनि नाहीं।
मुन्ना तुम जायो परदेसै, घर ते नीके दिन नीकि घरी,
हम कहा कि अजिया मानौ तो, हम आजुइ ते परथान धरी
पर उन ना मानी याक बात, अस दिसासूरू न होय दूरि,
तिसरे दिन निकरेन नीकि घरी, जब रहै मुहूरति पूरि-पूरि।
कम्पू पहुंचेन, मुन्नी दादा, हमका देखतै रिसियाय परे,
तुम ककस काल्हि ना आयो? कहि, निज भउहैं नाक चढ़ाय परे।
हम कहा कि हम पहुंचित जरूर, पर पंडित यतना बिघिन किहिन,
अजिया काकी दादी होरी, कहि दिसासूर चट मना किहिनि।
उन कहा कि तुम तो बइठि रह्यो,लई दिसासूर अपने घर मा,
मुलु हियां काल्हि भरती होइगै, है पूरि पूरि पुतरी घर मा ।
अब कहां जगा है? सुनि सूखि गयेन, तकदीर उतरि गै माथे ते।
आयन लै नीकि घरी तबहूं, नउकरी चली गै हांथे ते,
हम दिसासूर कै आनि मानि, रूकि गयेन हियां बहकावा मा,
दउरहरि परी सो उपर ते, गै बधिया बइठि केरावा मा।
चलि ठीक मुहूरति मा आयन, पर मोलु मिला ना माटी का,
जब सारा गुरू ग्वाबरू होइगा, तौ नीकि घरी लइ चांटी का ?