पहिलि नौकरी
नैाकरी पहिलि सहर मा कीन ।।
रही हम तक के कुछु सुकुआरि, न संभरा जब खेती का भार,
तंग पइसौ ते काफी भयन, नौकरी करै सहन का गयन।
रहै कुछु अइसि महूरति नीकि, नौकरी जातै खन भै ठीक,
करत उइ रहैं नीकि डकदरी, कीन हम जिनके घर नौकरी।
साम का आए जब सरकार, करायनि तांगा तुरत तयार,
लिहिनि हमका पाछे बैठाय, बइठिगे अपना आगे जाय।
जमे हम पाछे मनौ रहीस, बने बाबू जी खुदै सहीस,
देखि ना सकेन रीति बिपरीत, कहा साहब ना करौ अनीति।
परित है मालिक तुम्हरे गोड़, रहत हमरे ना हांकौ घोड़ु,
देखि कै हंसिहै लोग तमाम, अरे यहु नौकर निमकहराम।
देब तुम चाबुक यह अरदास, कहा उन सटप-सटप बदमास,
अरे तुइ नौकर महा गंवार, न जानै फइसनु सहरन क्यार।
बात गंवई गावन कै छांेडु, हियां मलिकै हांकत हैं घोड़ु,
कहा हम छिमउ न होउ नराज, हियां के उलटे रीति रिवाज।
न जानित रहै जानि अब लीन ।
नैाकरी पहिलि सहर मा कीन ।।
मेम साहब के सुनौ हवाल, चलै उइ औरौ उल्टी चाल,
न साहब ते सूधे बतलायं, गिरी थारी अइसी झन्नायं।
कबौं छंउकनु अइसी खउख्यांय, पटाखा अइसी दगि दगि जांय
करै सरकार डकदरी जांय, अकेले मा तब मगन देखांय,
फून मा कोहू ते बतलायं, कोइलिया मिठबोलनी होइ जायं।
कबौं हंसि हंसि के घुलि-घुलि जायं,फून मा नेनू असि होइ जांय,
देखि ई हाल गयेन अकुलाय, कहा तब मलकिन ते समझाय ।
मलिकिनिउ कहौ कउनु यू न्याव, न साहब ते सूधे बतलाव,
फून मा मिसिरी बनि घुलि जाव, भजा यह कइस तुम्हार सुभाव।
रहत हमरे न करौ अनरीति, करौ अपने साहब ते प्रीति,।।
सुनौ यह नौकर कै अरदास, कहा उन डैमफूल बदमास,
अरे तुइ नौकर महा गंवार, न जानै अंग्रेजी बेउहार।।
छोड़ु गंवई गांवन कै रीति, समुझु यह मन मानै कै प्रीति,
कहा हम छिमउ न होउ नराज, अिरे अंगरेजी रीति रिवाज।
न जानित रहै जानि अब लीन।
नैाकरी पहिलि सहर मा कीन ।।
दुधुमुहा पूतु रहै उन क्यार, जोन्हइया का अस सुघर पियार,
खेलावै मलकिन दूरि दुराय, न कबहूं अंचरे लेयं लगाय।
नौकरिन राखैं दूधु पियाय, राति दिनु सबै तना बेलमाय,
वहै बसि ध्वावै मुंहु औ हांथ, राति का सदा सोवावै साथ।
मलकिरनी स्वावैं अलग बिछाय, साथ पूसी का लेयं सोवाय,
कबौं बाहर जब घूमै जांय, साथ मा हमहूं का लइ जायं।
बेटउना हमका देयं छिदाय, पिलउना अपने गरे लगाय,
चलै दुलराय, खेलाय, मेलाय, याक दिन बोलेन हम समुझाय।
मेम साहब लरिका लइ लेव, पिलउना अइसी हमका देव,
नही तो ई विधि उल्टे काम,देखि जन होइहैं हंसति तमाम।
कहा उन तुइ है महा गंवार, न जानै फैसनु सहरन क्यार,
सहर की रीतिन का करू बोधु, हियां पिलवै बइठति है गोंद।
कहा हम छिमउ न होउ नराज, हियां कै यही अनोखि रिवाज।।
न जानित रहै जानि अब लीन।
नैाकरी पहिलि सहर मा कीन ।।
डाकदर अपना कइयौ दायं, खुराकै नानाविधि की खायं,
मुला हमरे खातै अनखायं, भोरू उठि दाँती पीसि रिसायं।
अरे तुइ नव दस रोटी खात, बड़ी है यह अचरज कै बात,
कहूं जो हाइ जइहै बीमार, कामु त्वै करिहै ककस हमार।
देखि हम रहे अगाहूं हरज, मना कइ देबु डकदरी फरज,
कहा हम कुछौ न पाइत औरू, हियां तो रोटिन तक है दौरू।
वउ हम जो न पेटु भरि खाब, कहैा कइसे परदेसु कमबा,
चारि दिन मा आधे होइ जाब, कउनु मुंह लइकै घर का जाब।
कहा उन तुइ है महा गंवार, न मानै कहा डाकदर क्यार,
रीति दे गांवन केरि बिसारि, काल्हि ते रोटी मिलिहैं चारि।
कहा हम साहब अंस न रिसाव, हियां खइबेव का निर्तनियाव,
काल्हि हम अपने गावैं जाब, सहर के ई डकदरी हिसाब।
न जानित रहै जानि अब लीन।
नैाकरी पहिलि सहर मा कीन ।।