तलब
जी फंसे तलब के चक्कर मां, उइ कहां जगत मा सुखु पावा ।
घर फूंकि तमासा द्याखै का, बसि जरिया एकु निकरि आवा ।।
सब चिरकुट कपरा सिलियाये, ई बुधई बढई का द्याखैा ,
अबहूं तकम हुक्का छूट नही, दिनु राति करति हैं खों-खों-खों।
मन्ना नाउ गांजा पी-पी, सब घर केै लक्ष्मी पी डारेसि,
जंगलिया तलबी मदिरा का, सब नासि चमरकमु कइ डारेसि।।
लरिका जगतू तिरबेदी के, हा, अबै उमिरि मा कच्चे हैं,
पर खांय तमाकू मांगि-मांगि, भें बड़े तमखुहा पक्के हैं।
गा पढ़बु तो भारे मा, होइ जांय तमाखू बिन अनमन,
आगे नारायन कुशल करैं, जब लरिकइयां मा ई लच्छन।।
हम दीख हुनरिया बारी का, है तरसत पोढ़ि लंगोटी का,
अबहूं तक दोहरा छूट नहिन, घर लरिका र्वावैं रोटी का।
जगमंगल ठाकुर जमीदार, तलबहा बड़े खुब नसा खांय,
पहिले अफीम फिरि भांग छनै, याकै दिन मा दूइ तीन दांय।।
फूलन ढिग जाति ममाखी है, सारे जग कै है यहै रीति,
पइसा वाले जगमंगल ते सब लागि नसेड़ी करै प्रीति।
तीतुर का पिंजरा हाथ लिहे, काने मा चूना कै गोली।
कहि गुरू ढुकियाय जांय, संझलउखा होतै भंगोली ।।
संकर पांड़े सुखदीन दुबे, रमबलिया नाउ गंगाधर,
औ बेरिया होतै पहुचि जांय, नित मलत तमाखू सिवसागर।
ना जानैं केतने चेला भें, जब जमै लाग पूरा जमघट,
कुछ नवसिखिया नियराय जांय, सुनि सिलबट्टा कै खट-खट-खट।।
फिरि लोटा भरि-भरि पान करैं,जय मंगल कै गुनगान करेै,
है बनी दूधिया आजु नीकि, कहि ठाकुर का सनमान करैं।
कोउ छनी पियै के बादिउ मा, है लीलि जात भंग कै गोला,
कोउ सिव का भोग लगाय पियै, कहि बं बं बं बं बं भोला।।
"ना मान-मान रे छान-छान", अस कहिहै कोउ चिल्लाय रहा,
कोउ भांग रसीली के लच्छा, मतबारे मन ते गाय रहा।
कोउ दोहा कबित सवइयन मा, जसु गावत है सिब बाबा का,
कोउ कहै बना परतापु रहै, ई हमरे ठाकुर दादा का ।।
कोउ आंखी मूंद पियत जात, कहि जय संकर जय-जय संकर,
कोउ सिव जी का परसादु गहै, तौ लागै कांटा ना कंकड़ ।।
ठाकुर का बहुतै खरचु बढ़ा, सम्पति पानी असि बहै लागि ,
यह बारू के असि भीति लक्ष्मी, दिन-दिन दूनी ढहै लागि ।।
उइ छानि-छानि सब छानि दिहिन, ठाकुर का मटियामेटु किहिनि,
गे घुनु अस लागि लक्ष्मी मा, ठाकुर का छूंछा टेंटु किहिनि ।
जगमंगन गेरूआ बसन पहिरि, होइ भिखमंगा निकसे घर ते,
बिकिगै जमीन र्यासद सिगरी, जन दुतकारै अब दर-दर ते।।
जब तक तौ लछिमी हाथ रही, सब कहत रहे बस गुरू-गुरू।
घनहीन भये पर कहै लागि, जब जयमंगल का थुरू-थुरू ।।