रमई काका

बुढ़ऊ का बियाहु

बात ना हमते जाति कही।

जब पचमन के घरघाट भयेन, तब देखुआ आये बड़े-बडे।
हम सादी ते इन्कार कीन, सबका लउटारा खड़े-खडे ।।

सम्पति सरगौ मा राह करै, कुछु देखुआ घूमि-घूमि आये।
अपनी लड़किन का ब्याहै का, दस पांच जने हैं मुंह बाये।।

पर सबते ज्यादा लल्लबाई, भे सिवसहांय अचरजपुर के।
उइ साथ सिपारिस लइ आए, दुइ-चार जने सीपतपुर के।।

सुखदीन दुबे चिथरू चैबे, तिरबेदी आये धुन्नर जी ।
कुन्जी पण्डित निरधिन पांड, बढ़कये अवस्थी खुन्नर जी।।

संकर उपरहितौ बोलि परे, तुम्हरे तौ तिनकौ ज्ञान नही।
यह सम्पति को बैपरी भला, तुम्हरे याकौ सन्तान नहीं।।

तब अकिल न ठीक रही।
बात ना हमते जाति कही।।

म्वांछन का जर ते छोति-छोलि, देंही के र्वावां झारि दीन।
भउंहन की क्वारै साफ भई, मूड़े मा पालिस कारि कीन।।

देहीं मा उपटनु लगवावा, फिरि कीन्ह पलस्तर साबुन का।
अब चमक-दमक मा मातु कीन, हम छैल चिकनिया बाबुन का।।

दीदन मा काजरू अंगवावा, माथे मा टिकुआ कार-कार ।
देहीं मा जामा डाटि लीन, मूड़े मा पगिया कै बहार ।।

फिर गरे मा कण्ठा हिलगावा, जंजीर लटकि आई छाती।
मानौ अरहरि की टटिया मां, लटका है ताला गुजराती।।

सब कीन्ह्यो रसम सही।
बात ना हमते जाति कही।।

जब संझलउखे पहुंची बरात, कुछ जनु आए हमरे नेरे।
बइसाखी मुसकी छांड़ि-छाड़ि, बतलाय लागि अस बहुतेरे।।

दुलहा की दुलहा का बाबा, जेहि मूड़े मौरू घरावा है।
यहु करै बियाहु हियां कैसे, मरघट का पाहुनु आवा है।।

ओंठे पर याकौ म्वांछ नहिन,यहि सफाचट्टु करवावा है।
बसि जाना दुसरी दुलहिन है, यहु तेरहीं कइकै आवा है।।

पीनस चढ़ि अइसे सोहि रहे, मानौ मिलि गा कैदी हेरान।
केधौं बिरवा के थलकुर ते, यहु झांकत है खूसटु पुरान ।।

बसि यही तनो अपमान भरी, कानन मा परीं बहुत बोली।
जी हमने जीमा च्वाट किहिनि, जैसी बन्दूकन की गोली।।

अब जियरा मा किरकिरी बढी,यहि संकर पंडित के ऊपर ।
जो बहु बिधि से समझाइ बुझै, लइ आवा असि विपत्ति हम पर।।

की जइसि न जाति सही।
बात ना हमते जाति कही।।

जब पहरू छा घरी राति बीति, तब भंवरिन कै बारी आई।
सब कामु रतउंधिन नासि कीन, दीदन आगे धुंधुरी छाई।।

पण्डितवै बात बनाय कहा, हमरी कइती दस्तूर यहै।
भंवरिन मा बर के साथ-साथ, नेगी दुइ एकु जरूर रहैं।।

उपरहितै अंगदर कामु कौन, वहिं दुइ नेगिन का ठढ़ियावा।
जिन हमका पकरि पखौरा ते, फिरि सातौ भंवरी घुमवावा।।

सतवीं भंवरी मा पांव म्वार, परिगा बेदी के गड़वा मा।
जरि गयेन जोर ते उचकि परेन, अधपवा अइस भा तरवा मा।।

हम बका झिका कहि दीन अरे, ई नेगिन हैं बिन आंखिन के।
बसि यतना कहतै हमरे मुंह, कुछु घुसि गे पखना पांखिन के।।

हम हरबराय के थूंकि दीन, उइ अखना पखना रहैं जौनि।
सब गिरिगें नेगिन के ऊपर, ई करैं रतौंधी चहै जौन।।

नेगी बोले यह बात कइसि,तुम हमरे ऊपर थूंकि दिहेत।
हम कहा कि बदली लीन अबै, तरवा हमार तुम फूंकि दिहेव।।

ई बिधि ते लाज रही ।
बात ना हमते जाति कही।।

जब परा कल्यावा संझलउखे,तब फिरि विपदा भारी आई।
छत्तीसा लइगा चउकै मुलु, पायन ते पाटा छिछुवाई ।।

भगवान कीन पाटा मिलिगा, मुलु खम्भा मा भा मूंड़ु भट्ट।
बटिया सोहराय अड़उखे मां, पाटा मा बइठेन झट्ट पट्ट।।

पर मुंहु देवाल तन करि बइठेन, बिन दीदन सोना माटी है।
तब परसनहारी बोलि परी, बच्चा पाछे तन टाठी है।।

हम कहा कि हमरेव आंखी हैं, चहुं अलंग निगाहै फेरि रहेन।
है बड़ी सफेद पोताई यह, सेा हम देवाल तन हेरि रहेन।।

बसि ई बिधि कइकै बतबनाव, टाठी कइती समुहाय गयेन।
बिन दांतन चाबी कौरू ककस, बस पानी घूंट नघाय रहेन।।

जब दूधु बिलारी अधियावा, तब परसनहारी हांकि कहिसि।
मरिगइली नसियाकाटी यह, ऊपर कै साढ़ी चांटि लिहिसि।।

हम कहा बकौ ना जानि बूझि, ना हम यहिका दुरियावा है।
घरहूं मा सदा बिलारिन का, हम साथै दूधु पियावा है।।

ऊपर ते ऊपरचुपरू कीन, भीतर ते जियरा जिरजिरान।
जब जाना साढ़ी नहीं रही, तब तौ सूखे आधे परान।।

पर परसनहारी टाठी मा, जब हाथें ते पूरी डारा।
हम जाना आई फिरि बिलारि, मूड़े मा पाटा दइ मारा।।

सीमेण्ट उखरि गै मूंड़े कै, तब रसोइंदारिन रोई है।
सब भेदु रतौंधिन का खुलि गा, चालाकी सारी खोई है।।

ना कच्ची हंड़िया बार-बार, कोहू के चढ़े चढ़ाए है।
अधभूंखे भागेन समझि गयेन, ना बनिहै बात बनाये ते।।

अब बिगरी रही सही।
बात ना हमते जाति कही।।