रमई काका

बरखोज

हम तीन बरस ते लगातार बर खोजि-खेाजि कै हारि गयन।
ना जानै केतने लरिकन का, हम बानाबन्तु विचारि भयेन ।।
कोहू कै नारी लागति है, कउनौ लरिका मंगली मिला ।
कोहू के लागै दान सिरिफ, कौनो अनपढ़ जंगली मिला।।
कोहू के कारन मात पिता, घर भारी बिपदा झेलि रहे।
कोहू के भूंजी भांग नहिन, घर चूहा डण्डै पेलि रहे।।
कोउ घाकर बनिगा उंचकुलवा, कोहू का बहुतै बुरा हाल।
कोउ मिला दुइजहा बहुत ज्याठ, कउनौ कंगला ठंठन गोपाल।।
कहुं दीख तलबहा नान्हे का, कोउ बडा फलसफा सैलानी।
कोउ निपट बुलबुलन का सउखी, कोउ मिला तितुरहा अज्ञानी।।
तेहि पर ना कोउ सूधि कहेसि, सब गिनती गिनेन हजारन ते।
इन सबके तो दक्षिणा सुने, बहि चला पसीना बारन ते।।
हम मिलेन बहुत कनवजियन ते, ना कोउ आदर के साथ लिहिसि।
अरदास कहा जहिते आपनि, सो टेढे मुंह होइ बात किहिसि ।।
जब राम अधीन तिवारी की, बातन ते बहुतु निरास भयेन।
तब फिरि बिटिया के ब्याहे का, गुरूदीन मिसिर के पास गयेन।।
महराज मिसिरजी ते बोलेन, हम बानाबन्तु बिचरवावा।
नच्छत्रु एकु है नारी का, तहिते हमरे बहु मनु भावा ।।
है बीस-बीस का जोगु जागु, दून्हो कनवजिया हन बांके।
तुम मिसिर मुरादाबादी हौ हम सुकुल खरे हन बाला के।।
बाइस का लरिका है तुम्हार, बिसहीं मा बिटिया है हमारि।
है बना बनावा जोगु मुला, अब होय चही मरजी तुम्हारि।।
हम तौ घर वर ते सबै भांति, अब मन आपुन बैठारि चुकेन।
बरछिदी आजु कइकै जइबै, मन मां बस अइस विचारि चुकेन।।
महराज मिसिर जी तब बोले, यह लरिका सुकुल तुम्हारै है।
जिव चहै करौ तब शादी तुम, सबही अधिकार तुम्हारै है ।।
पर अबै तनिकु कुछु धीर धरौ, है एतनी जल्दी कउनि परी।
तब तक दुइ चारि सलाहिन ते, कुछु हमहू तो मसविरा करी।।
वइसे तो कउनिउ बात नहीं, हम सहमत निजी विचारन ते।
पर कुछु सलाह है लेब उचित, निज भाई भइयाचारन ते।।
तुम तो सब बातै समझति हौ, सादी मा सुकुल झमेल बड़े।
पाछे ते ओरहुन देहै सब, "शादी ते किह्यो अकेल अरे ?"
हम कहा बइठि हन तब तक हम,औ तुम सबका बोलवाय लेव।
है नीकि घरी सो कई बिचारि, बरछिदी आजु धरवाय लेव।।
तब दया किहिनि मिसरउ बड़ी, उइ सन्देसा भेजवाय दिहिनि।
निज मि़त्रन भइयाचारन का, बस तबै तुरन्त बोलय लिहिनि ।।
मुन्ना पांड़े, सुखराम मिसिर, औ आय दिक्षित बन्टोले जी।
दोहरा कै थैली हाथ लिहे, महराज अवस्थी गोले जी ।।
उइ जगत नरायन तिरबेदी, जेा तिलकु लगाए माथे मा।
और गड़ई पर के दुबे आय, यक माला लीन्हे हाथे मा।।
कुछ देर तैंकु सब बइठि रहे, फिरि करै लागि बतफर्रूसी ।
जब आये बच्चू बाजपेई, तब होय लागि कानाफूसी ।।
कुछु दूरि रही हम बइठि चुप्प, भा एकु घरी तक गुरूमतवा।
है कौन विषय घौं छिड़ भला, अब हमरे जी मा सोंचु भइ़ा ।।
जब दीख दुबे गडई पर के, हैं मूड़ी झिटकत बार बार ।
तब जाना लच्छ नीकि नहिन, ना नइया जाई आर-पार ।।
फिरि उठि के बच्चु बाजपेई, हमरे ढिग आय पधारि जबै।
तब उनकी बातै सुनत-सुनत, भें र्वांवा ठाढ़ि हमारि सबै।।
उन कहा सुकुल जी दायजु तो, मिसिरन का पंच हजारी है।
मुलु तुमहूं सुकुल हौ बाला के, मरजाद तुम्हारिउ भारी है।।
यहि कारन तुम्हरी नीतिन तो, अब दायजु होइगा आधा है।
ढाई हजार बस उइ लेहैं, फिरि औरि न कउनिउ बाधा है।।
फिरि कहेनि पांच सै दइ दीन्ह्यो, तुम अबै सुकुल फलदानन मा।
तब तौ सब देंही सुन्न परी, हम डारा अंगुरी कानन मा।।
हम का मिसिर लरिकउना का, घर ब्याहैं कउनेव धाकर के।
पर यतना दायजु ककस द्याब, हम कनवजिया उंचे घर के।।
सम्बन्धु हमार बराबरि का, हमते दायज कै आसा ना।
हम समुझि बूझि कै काम करब, देखिबे घर फूंकि तमासा ना।।
सम्बन्धु ठीक करि लइ बरात, जो अउती उइ हमरे दुवार।
तौ स्वागतु औ सत्कार करित, कइ देइत सारे नेगचार ।।
उन कहा सुकुल जी घरै जाव, तब यह सादी अनहोनी है।
तुमका तो नौ मन ध्वाख परी, मुलु यह गदहा कै गोनी है।।
हम कहा जरूरै घरै जाब, जब यह सादी अनहोनी है ।
मनई के लाद लदति नहीं, जो यह गदहा कै गोनी है।।