कचेहरी
हम काल्हि कचेहरी देखि लीन।।
वह छंगुवा कै महतारी जब, लरिकउना क्यार वियाहु किहिसि।
महंगू बजाज के दरवाजे, तब हांथ जोरि अरदास किहिसि ।।
तुम हमरे बेउहर हौ पुरानि, अबकी तो लाज बचाय लेव ।
रूपिया पचास कै मददि करौ, हमते कागदु लिखवाय लेव ।।
वह अपने घर कै पोढ़ि मोटि, महबूत गहन औ गुरिया ते ।
महंगू रूपिया दइ दिहिन तुरत, सन्दूक धरी इस झोरिया ते।।
फिर शंकर दुबे बोलायेगे, उई पाग उतारेनि माथे ते ।
जिन बड़ेन बड़ेन का खेलि लीन, बसि अपने बाएं हांथे ते।।
मसहूर मुकदमा बाजी मा, जी सांपु बनावै लत्ता ते।
मनमाना सहतु निकारि लेंय, उइ बर्रइयन के छत्ता ते।।
उनते कागदु लिखवावा गा, मनमाने आंक धराय लिहिनि।
अब आवा काम गवाही का, तब हमका तुरत बोलय लिहिनि।।
हम खस होइ छाप लगावै का, स्याही ते अंगुठा घेपि लीन।
हम काल्हि कचेहरी देखि लीन।।
रूपिया पचास के ढाई सौ, कागद मां आंक धराए गे ।
वहिं देबे ते इनकार कीन, दुई चारि तगादा आये गे।।
तब संकर दुबे उनावैं गे, उइ दावा केहेनि कचेहरी मा।
छंगुवा की दीदी हालु सुना, सिरू दइ-दइ मारे डेहरी मा।।
ज्ब सम्मन आये लिहिनि देाऊ, छंगुवा औ छंगुवा कै दीदी।
घुसि आये हमरिउ चउपारी, चपरास लगाये बकरीदी ।।
हैं उइ सरकारी छरी छुये, बइठै का ब्वारा डारि दीन ।
फिरि राब निकारा बीजर कै, औ सरबतु थ्वारा घोरि लीन।।
बकरीदी मैलजि के प्यासे, पानी कै घुण्डी खोलि लिहिनि।
सम्मनु हमका दइदिहे बादि, लोटिया दुई चारि ढकोलि लिहिन ।।
तब तौ उइ दिसा सिधारे हैं, घन्टा-घन्टा मा तीन-तीन ।
हम काल्हि कचेहरी देखि लीन।।
फिरि जउने दिन तारीख परी, हम झंगिया ताखी डाटि लीन ।
लइ पइसा महंगू दादा ते, टिक्कस कटाइ कै बांधि लीन ।।
तब आई रेल बरेली ते, पहिले घुसि गयेन जनाना मा।
तब सबै मेहेरिया भुकुरि उठीं, हम भागेन दुसरे खाना मा।।
यह याक टेम कै गाड़ी है, खिरकिन मा हिलिंगे बड़े-बड़े ।
जइसे तइसे घुसि गयेन मुला, हमहूं का बीता खड़े-खड़े ।।
मुड़वा पनहिन ते याकन का, हम पांव पिलौधा कइ डारा।
जब रेल ठाढ़ि भै झ्वांका ते, मूड़ी उनहिन पर दइ मारा ।।
तब तो उइ नथुना लाल किहिन, औ जिरजिराय गरियाय चले।
हम वइसी ते मुंह फेरि लीन, कुछ जन उनका समुझाय चले।।
मुलु थूंका जबै तमाखू हम, फिरि उड़िकै उन पर पीक परी।
तब तो सब डेब्बा भनमनान, हम गारी पावा खरी-खरी।।
ना चढ़ब बरेली गाड़ी मा, हम कान पकरि उठि-बैइठि लीन।।
हम काल्हि कचेहरी देखि लीन।।
संकर काका के साथ-साथ, हम घर वकील के पहुचि गयेन।
उइ हमका पाठु पढ़ाय चले, हम झिटिकि मूड़ु अस कहत भयेन।।
वह ढाई सौ का करजु लेय, यतनी वहिकै औकाति कहां।
साहेब तुम तनिक विचार करौ, छेरी मुंह कुम्हड़ा जात कहां।।
महंगू दादै यहु हालु दीख, तब किहिन चिरउरी बार बार ।
बरफी लइ आये पउवा भरि, तब तौ खुश होइगा जिउ हमार।।
हम कहा न यहिमा झूठि बात, वहि लीन अढ़ाई सौ इनतें।
मुसक्याय दिहिन वकिलउ तबै, होइगे बहुतै खुस हमसे।।
फिरि चले ताव दै म्वाछन पर, औ गयेन कचेहरी पइठि तबै।
जहं आपन आपन तखत धरे, गंगावासी अस बइठि सबै ।।
फंसि गयेन हुवैं लिल्लामी मा, वहिं हमते रूपिया ऐंठि लीन।
हम काल्हि कचेहरी देखि लीन।।
हम हरि भजनन का गये रही, वाटै का मिली कपास मुला।
लिल्लामी वालेन लूटि लीन चसमा मा रूपिया एकु घुला।।
पउवा भरि बरफी हांथ लागि, औ स्वारा आना डारि दीन।
जेतने कै कीन्ही भगति नहीं, वतने कै खंझरी फोरि दीन।।
चिल्लान जोर से चपरासी, तब हाजिर भयेन कचेहरी मा।
गिरि परेन वकिलऊ के ऊपर, जब पांव लागि गा डेहरी मा।।
फिरि चपरासी के कहिबे पर, गंगा कै किरिया खाय लीन।
तब तौ वकील कै चढ़ि बाजी, उन डेगरी तुरत लिखाय लीन।।
पर जबहीं चलेन कचेहरी ते, चपरासी दहिने दिहिसि छींक।
वह वसुधा बेईमानी कै, ना कहूं बैपरी ठीक-ठीक ।।
संकर काका कै आंखि फूटि, महंगू का लरिका जात रहा।
बरखा मा म्वारौ घरू गिरिका, मै सालन तक पछितात रहा।।
कब कहिका भला कुधानि फली, हम बड़े-बड़ेन का देखि लीन।
हम काल्हि कचेहरी देखि लीन।।