अन्न देवता
कहि रही घरैतिनि मुनुवा ते, ऐ पूत ! अन्नु बिखराव न तुम ।
भिनसारे इन पर वास बूंद, अमरित अस, लाल परी नायसि ।
इनका बालिन के पलना मां, थपकी दई बउखा दुलरायसि ।
ख्यातन मां इनके जनमत खन, सोहर सरिया पंक्षी गाइनि।
छइ रकत दान इनका किसान, सींचेनि पातेन औ लहकाइनि।
निज भरा पुरा खरिहानु देखि, होइगा किसान का गल-गल मन।
चटकील चालु भै घरतिन कै, गुंजा आंगन झन झनन झनन।
ई हउस हउसिला के बीजा, बिन स्वारथ के विफलावो न तुम।
कहि रही घरैतिनि मुनुवा ते, ऐ पूत ! अन्नु बिखराव न तुम ।
दाना दाना की मूठी मा, ना जानै केतनी राशि छिपी।
ई दानन मा है देखि परत, दूबर पातन जरजर किसान।
तपसी धरमी करमी किसान, फुरतीला पैसरमी किसान ।
ई बूंद पसीना के जहिके, हैं साक्षात मूरति बनिगे ।
उई दानी देउता के सिक्का, हैं दानन कै सूरति बनिगे।
जुगुतिन से सिरिििज संवारि धरब, ई सिक्का असि बिनसाव न तुम।
कहि रही घरैतिनि मुनुवा ते, ऐ पूत ! अन्नु बिखराव न तुम ।
तपसी किसान की कीरति के, ई दाना हैं अम्बर अच्छर।
होई जाति बदौलति इनििहन के, धरती हरियन सोनहरा सुघर।
ख्यातन केै माटी छूतै ई, हैं कन-कनमा जिउ डारि देत ।
खेतिहर की आशा के अंगुसा, कचकच गहगहे उनारि देत।
इनका पनपत देखि चिरइया, ख्यातन मा हुलसीं कुलकीं।
पउरूखी किसानन की पुतरी, इनका लहकत देखतै लहकीं।
कटकटे पैसरम के फल ई, माटी मा लालु मिलाव न तुम।
कहि रही घरैतिनि मुनुवा ते, ऐ पूत ! अन्नु बिखराव न तुम ।
मूठी भरि छिरके दाना ई, बिनि लाव पूत तुम बोरिया मा,
ना जानै कब धौं जाय परैं, ई कहिकी भूखी झोरिया मां।
ई दानन के हित हाथु पसारैं, दीन दुखी धरि अजब भेषु।
येई दानन के कारन ते, भूखन मरिगा बंगाल देशु ।
बसि अन्न देव की किरपा मा है, बहु हउसै हुलसनि कुलकनि।
है जहां कोपु तंह है अकालु, परलय झुलसनि हउकनि बिलखनि।
परसादु लच्छिमी जी का यहु, सपनेउ मइहां निदराव न तुम।
कहि रही घरैतिनि मुनुवा ते, ऐ पूत ! अन्नु बिखराव न तुम ।