बिधाता कै रचना
जगत कै रचना सुघर निहारि, कोइलिया बन-बन करति पुकार।
झरे हैं झर-झर दुख के पात, लहकि गे रूखन के सब गात।
डरइयन नये पात दरसानि, पलइयन नये पात अंगुस्यानि।
पतउवन गुच्छा परे लखाय, परी हैं गुच्छन कली देखाय।
कलिन का देखि हंसी हैं कली, गगरिया अमरित की निरमली ।
गमकि गे फूल उठी अरधान, धूरि फूलन कै होइगै स्वान।
भंवरवा धाए पंख पसारि, मोहि गईं तिन का कली निहारि।
भंवर ई उनके मन के मीत, रहे हैं भेंटि कलिन का गीत।
कली करती हंसि हंसि रस दान , करत हैं भंवरा छकि छकि पान।
प्रभू की रचना पर बलिहार, कइ रहे ओम-ओम गुंजार ।
हिये मा कुलकनि भरे अपार, कोइलिया बन बन करति पुकार।
करउंदन गमकि उठी अरधान, मिले मानौ प्रानन मा प्रान ।
पकरिया पातन ते लदि परीं, चिलौलिन हरियर तितुली फरीं ।
उपजिगे नीबिन क्वांप लजील, टेहरन मानो पनपा सील ।
पीपरन निरमल झलमल पात, मगन होई लहर-लहर लहरात।
महकुए फुलवा साजि संवारि, बढी है बेली बांह पसारि ।
जगत कै रचना अपरम्पार, हलावैं हाथु न मिलिहै पार।
सुघरई छिनु-छिनु नई निहारि, कोइलिया बन-बन करति पुकार।
आम के होइगे चीकनि पात, सुघर केसरिया बउर सुहात ।
अरे ई सोने के असि झंउर, टिभुनियन सजे बसन्ती मउर।
पात भ्यांटै कविता का चाव, बउर उकसावैं मन मां भाव ।
कोइलिया रस नावै बेथाप, भरै बिरछन मा मीठि अलाप,
झरैं अमरित बन मा सब ठउर, महकि गे सब सुघरीले बउर।
बउर मा दरसी अमिया हरी, तान पंचम कै फूली फरी।
अमिलिया नान्हे पातन भरी, लउछियन झुपसन हउसन फरी।
गहन सब साजे सोभा घनी, अंबिलिया सुघर सोहागिन बनी।
मोहिनी छबि पर है बलिहार, कोइलिया बन-बन करति पुकार।
नये पतवन के लहकत बसन, नये फूलन के सोहत गहन ।
छिउलियान दीन सेंधउरा साजि, बिहंगन च्वांचन पायल बाजि।
लखति ख्यातन मा शुभ पियरई, बनी है धरती दुलहिन नई।
अनोखी रचना पर बलिहार, कोइलिया बन-बन करति पुकार।
जरैं बिरछन के पातन दीप, बयरिया चंदनु दीन्हेसि लीपि
बिरिछि भ्यांटैं फूलन के हार, चिरइया गावैं किरति अपार।
डरइया झूमैं चंवार डोलाय, पतउवा तारी दिहिनि बजाय।
रंगीली तितुली पंख पसारि, लहरि दइ नाचीं छटा निहारि।
मुकुट असि अंबवन बउर लखात, सेमरन कुण्डल सुभग सोहात।
पितम्बर धरती दीन्हेति साजि, सहत के छतरन बंसुरी बाजि।
कन्हइया रूप बसन्ती साजि, रहा जग मन्दिर बीच बिराजि।
नांव जपि प्रभू-प्रभू बलिहार, कोइलिया बन-बन करति पुकार।