साहेब ते भ्यांट
नौकरी ढूंढ़त बिपदा परी ।।
याक दिन मन भा अइस विचार, चलौ सहरौ का देखी यार ।
चलेन नीके दिन नीकी घरी, सहर मा ख्वाजै का नौकारी ।।
गिठूठी सेतुवन कै लइ लीन, कांध पर भंगोटना धरि लीन ।
तमखुही थइली लीन भराय, अंगरखा गाढ़ा का सिलवाय ।।
मोटक्की धोती बिधिते भाय, लीन हम गांठिन तक हिलगाय ।
छल्लहा दुइ पइसा कइ टेंट, कमर का कसि कै बांघा फेंट ।।
दुलंगी लांग बांधि फिरि लीन, तड़क्के चटकि चालु चलि दीन।
सहर मा जब हम पहुंचेन जाय, गयन बहु खोजि खोजि अकुलाय।।
सगत्तर पूंछा पूछत गली।
नौकरी कहूं न ढूढ़े मिली।।
किहिनि कुछु याकै भलमनसाव, कहेनि साहेब के बंगले जाव ।
बड़ मुसकिल ते बंगला मिला, फते कइ डारा मानौ किला ।।
कीन्ह तब फाटक बीच पयान, कुकरवा साहब का खउख्यान ।
रहै यू वही तना का ठीक, जइस फूनूगिलास मा दीख ।।
ठिठुकि कै पछरेन पांव हटाय, कुकरवा तरियायसि हउहाय।
हाथ ते पुटकी लिहिसि छिनाय, दिहिसि सब सेतुवा भुंइ बिथराय।।
अंगउछौ डारेसि चटपट नोंचि, रहेन हम ठाढ़े ठाढ़े सोंचि ।
हियां का सधी कोहू का हेत, घूसि जंह कूकुर तक लइ लेति।।
बिधाता आगे कसधौं करी।
नौकरी ढूढ़त विपदा परी ।।
अबै ना डोलु नौकरी क्यार, मिले घरहू के धान पयार ।
दीख जब सेतुवन के ई हाल, उठावा भंगोटना तत्काल ।।
न मानेसि डंडौ के कछु आनि, औरू ऊपर ते अइस रिसान।
अलापेसि भुक्कु भुक्कु का रागु, दिहिसि पांयन मा पंजन दागु।।
अबै तक बड़ी समाई कीन, दुहत्था भंगोटना धरि दीन ।
कुकरऊ पें पें पें चिल्लानि, कार का भेांपू अस पुपुहानि ।।
चढ़ाये भौंह लाल कइ नैन, निहारेनि चितवनि कइकै पैनि।
खड़े भे समुहे जैसे लाट, किहिन मुंहु मोटर अस इसटाट ।।
न जानै केतनी गारी दिहिन, न्यौति पुरिखन का हमते किहिनि।
बिलइती कूकुरू साहेब क्यार, सताये त्वै कस अरे गंवार ।।
जरूरति कउनि अइसि होइ परी, बपैाती रहै तोरि का धरी।
किहे कस बंगले बीच पयान, कहा हम थांभौ तनिकु जबान ।।
अबै हम बंगला मा कब गयन, एकु पग धरत गुनाही भयन ।
कुकरवा हउंफा बहुत रिसान, तुमरिही तना वहौ खउख्यान ।।
लखौ पायन मा लीन्हेसि काटि, रह्यो तुमहूं हमही का डाटि।
परत है महिका तो अस भासि, दोऊ तुम रिस मा याकै रासि।।
दुखुइ देखे मनई होइ जाव, जरे मा काहे लोन लगाव ।
अंगउछौ फाट कहौ कस करी।
नौकरी ख्वाजत बिपदा परी ।।
मिलै साहब ते जाइत रहेै, कइसि असगुनही साइति रहै ।
कहा उन तुइ है निपट गंवार, किहे कस मन मा अइस विचार।।
रखाए म्वच्छ बढ़े गउझारि, बनाए बिन दाढ़ी के बार ।
राच्छस बना चला त्वै जात, न तनिकौ मन मा है सकुचात।।
अरे का ज्ञानु चरै का त्वार, मिलत कहुं अइसे हैं सरकार।
मसल यह कही जाति है भली, अरे मुरगिहू मदारन चली ।।
कहा हम जो है कहबु तुम्हार, मुला कुछु मन मा करौ विचार।
दूरि ते करिबे राम जोहार, अखरिहैं कस दाढ़ी के बार ।।
बने हैं अबही बाप हमार, मुड़ाई ककस म्वाछ गउझारि ।
कहूं जो मुछमुंडा होइ जाब, भला हम कइसे घर का जाब।।
जियरवा जाई दुख ते छेदि, घुसत घर लरिका लेहै खेदि ।
रिसइहैं बाबू देखतै तुरत, किहै कस तेरहीं हमरे जियत ।।
घरैति होइ जाई बेहाथ, न तब फिरि सहबौ देहैं साथ।।
देखि कै डरैं म्वाछ के बार, अइस डेरप्वांक हुजूर तुम्हारि।
न मिलिहैं साहब तो ना सही, म्वांछ गउझारि वांठ पर रही।।
चले बद्रीनाथन तक गयेन, भेस मा तबहूं अइसे रहेन ।
कहा उन हमते अरे गंवार, न जानै बड़ेन क्यार बेउहार।।
छोंड़ देबी देउतन केै बात, हियां तो भेसुई पूजा जात ।
कहा हम बहुत न होउ नराज, हियां के लच्छन जाने आज ।।
अगारू कस निबही नौकरी।
कि जब ख्वाजै मा बिपदा परी।।